स्वजातीय महत्वपूर्ण स्थान

ग्राम दरगाह का इतिहास

वर्तमान में सरयू नदी से लगभग 5 कि०मी० दक्षिण बसा यह गांव अपने आप में विभिन्न जातियों, साम्प्रदायों को समेटे हुए दक्षिण में डीह बाबा, पश्चिम में दुर्गाजी, पूरब में काली जी तथा उत्तर में मीरा शाह की मजबूत एवं सुरक्षित आगोश के बीच स्थित है | इस ग्राम में मुग़ल काल में बहुत बड़ा जंगल था, जो कोल्हुआ के नाम से प्रतिष् ित था | उक्त कोल्हुआ बन में एक बलशाली कोल्हुआ देव निवास करते थे | इसी बन में मीरा शाह आए, और झोपड़ी बनाकर ईश्वर का भजन--भाव करने लगे | विचारों एवं कार्यों में भिन्नता होने के कारण कोल्हुआ देव की मीरा शाह से बनती नही थी | मीरा शाह के समझाने के उपरांत कोल्हुआ देव एवं मीरा शाह इसी जंगल में प्रेम से रहने लगे | अपने पिता से नाखुश होकर शेरशाहसूरी मीरा शाह की प्रसिद्धि को जान कर इसी जंगल में आया और उनके चरणों में गिर पड़ा | जब मीरा शाह समाधि से जगे तो उसे बै ने का आदेश दिये, और पुनः समाधी में लीन हो गये | जब उनकी आंखें खुली तो कि शेरशाह अब भी खड़ा है तो उन्होंने पुनः डांटकर बै ने के लिए कहा | शेरशाह ने बै कर बाबा को पूरी घटना बतायी | मीरा शाह ने उसे कुछ समय बाद दिल्ली कि गद्दी पर बै ने का आशीर्वाद दिया तथा उसकी पहली संतान को अपनी सेवा एवं ईश्वर की भजन भाव के लिए देने को कहा | उनकी बातों से सहमत होकर शेरशाह सूरी वापस चला गया कुछ समय बाद शेरशाह दिल्ली का सम्राट बना | वह अपनी पहली संतान मानो को संत की सेवा में रौजा बनाकर सुपुर्द कर मीरा शाह को प्रणाम कर उनसे शिक्षा लेकर दिल्ली चला गया | इसी मानो तथा जिस चबूतरे पर बै मीरा शाह भजन भाव एवं उपदेश देते थे तथा उनके साथ के लोंगो की पूरब तरफ दरगाह होने के कारण इस ग्राम का नाम चकमानो उर्फ दरगाह रखा गया | मीरा शाह के चमत्कार से यहां के सभी हिन्दू मुसलमान प्रभावित थे | इसी रौजा से सटा एक पाताल गंगा है, जिसमे हमेशा नीर रहता है, तथा यह प्रसिद्ध है कि कुत्ता या सियार के काटने वाला व्यक्ति इस पाताल गंगा अपने शरीर या कटे घाव को धोता है तो वह ीक हो जाता है | आज भी यह आम धारणा है कि मीरा शाह जीवित तथा गंगा दशहरा के बाद पड़ने वाले वृहस्पतिवार से लेकर सात वृहस्पतिवार तक इसी रौजा पर मेला लगता है | जिसमे सभी व्यक्ति जो किसी भी जाती अथवा सम्प्रदाय के हो उनसे मिलका कोल्हुआ देव व मीरा शाह को

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